नमामि गंगे कार्यक्रम में कई परियोजनाएं मंजूरनमामि गंगे कार्यक्रम में कई परियोजनाएं मंजूर

देहरादून, 11 सितंबर। उत्तराखंड की मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने नमामि गंगे कार्यक्रम की पावर्ड टास्क फोर्स  की 12वीं बैठक तैयारियों के दौरान जानकारी दी कि नमामि गंगे कार्यक्रम के अंतर्गत 244.48 एमएलडी क्षमता सृजित करने के लिए 62 (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) एसटीपी की स्थापना के लिए सीवरेज अवसंरचना की कुल 43 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है, जिनमें से 165.06 एमएलडी क्षमता वाले 42 एसटीपी स्थापित करके 36 परियोजनाएं पूर्ण कर ली गई हैं तथा 79.42 एमएलडी क्षमता वाले 20 एसटीपी की स्थापना हेतु शेष 07 परियोजनाएं क्रियान्वयन के विभिन्न चरणों में हैं। 

एनएमसीजी एवं सीपीसीबी द्वारा किए गए मूल्यांकन के अनुसार 170 नालों की पहचान की गई है, जिनमें से 137 नालों को रोका जा चुका है, 33 नालों को रोकने के लिए विभिन्न परियोजनाएं क्रियान्वयन के विभिन्न चरणों में हैं। इसके अलावा उधम सिंह नगर में कल्याणी नदी के प्रदूषण को कम करने के लिए 40 एमएलडी एसटीपी के लिए डीपीआर और हल्द्वानी काठगोदाम क्षेत्र में गौला नदी में गिरने वाले प्रमुख नालों को रोकने और मोड़ने के लिए परियोजनाएं तैयार की गई हैं और मंजूरी के लिए एनएमसीजी को भेजी गई हैं। केएफडब्ल्यू द्वारा वित्तपोषित परियोजनाओं के तहत हरिद्वार और ऋषिकेश शहरों में 541 किलोमीटर लंबे सीवर नेटवर्क में गंगा नदी में गिरने वाले सीवेज के 100 प्रतिशत उपचार का प्रस्ताव है। 79 स्थानों पर सतही जल की मासिक आधार पर नियमित निगरानी की जा रही है। यूकेपीसीबी ने त्रिवेणी घाट ऋषिकेश, कौड़ियाला बद्रीनाथ मार्ग टिहरी गढ़वाल और देवप्रयाग टिहरी गढ़वाल में डिस्प्ले बोर्ड लगाए हैं। नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत ऑनलाइन निगरानी प्रणाली से लैस 22 एसटीपी चालू हैं और गंगा तरंग वेब पोर्टल से जुड़े हैं। उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूकेपीसीबी) और उत्तराखंड पेयजल निगम/उत्तराखंड जल संस्थान द्वारा इनलेट और आउटलेट अपशिष्ट जल की गुणवत्ता की मासिक निगरानी की जाती है, ताकि जल गुणवत्ता मानकों का अनुपालन सुनिश्चित किया जा सके, जिसमें फेकल कोलीफॉर्म परीक्षण भी शामिल है।

नियमित निगरानी के परिणामस्वरूप गंगोत्री से ऋषिकेश तक पानी की गुणवत्ता में सुधार हुआ है, जहाँ यह वर्ग-ए मानकों (पीने के लिए उपयुक्त) को पूरा करता है। ऋषिकेश से हरिद्वार तक पानी की गुणवत्ता वर्ग-बी (बाहर नहाने के लिए उपयुक्त) के अंतर्गत आती है और इसे बेहतर बनाने का काम प्रगति पर है।

मुख्य सचिव श्रीमती राधा रतूड़ी ने कहा कि गौरी कुंड एसटीपी के लिए भूमि का स्वामित्व माननीय जिला न्यायालय द्वारा दूसरे पक्ष अर्थात बाबा काली कमली ट्रस्ट के पक्ष में तय किया गया था। अब बहुमंजिला संरचनाओं का निर्माण करके पास के 6 केएलडी एसटीपी की उपलब्ध भूमि पर 200 केएलडी एसटीपी को समायोजित करने का प्रस्ताव है। राज्य में 105 शहरी स्थानीय निकाय (यूएलबी) हैं, 98 ने सेप्टेज प्रबंधन प्रकोष्ठ (एसएमसी) स्थापित किए हैं, 73 यूएलबी द्वारा उप-नियमों की राजपत्र अधिसूचना प्रकाशित की गई है और 30 यूएलबी अनुमोदन के लिए राजपत्र अधिसूचना के विभिन्न चरणों में हैं। घरेलू सर्वेक्षण के आधार पर, हरिद्वार, ऋषिकेश, देवप्रयाग और श्रीनगर में मौजूदा एसटीपी में सेप्टेज के सह-उपचार के लिए डीपीआर को एनएमसीजी द्वारा मंजूरी दे दी गई है और यह निविदा चरण में है। ऋषिकेश में, वर्तमान में एकत्रित सेप्टेज को लकड़ घाट में एसटीपी में डाला जा रहा है। रुद्रपुर में 125 किलोलीटर क्षमता वाली एफएसटीपी है, जिसमें गूलरभोज, गदरपुर, दिनेशपुर, केलाखेड़ा और लालपुर जैसे क्लस्टर शहर शामिल हैं। 

सिंचाई विभाग ने उत्तराखंड बाढ़ मैदान क्षेत्र अधिनियम, 2012 के तहत 614.60 किलोमीटर नदी खंड (अलकनंदा, भागीरथी, मंदाकिनी, भीलंगाना और गंगा) को अधिसूचित किया है। नदी खंड (गोला, कोसी, सुसवा, सोंग और बल दिया) में 361.25 किलोमीटर बाढ़ मैदान जोनिंग का सर्वेक्षण और हाइड्रोलॉजिकल अध्ययन कार्य पूरा हो चुका है और अधिसूचना जारी होने की संभावना है, जो दिसंबर, 2025 तक पूरी होने की संभावना है। जलग्रहण क्षेत्रों में वन आवरण बढ़ाने के लिए नदी बेसिन की सुरक्षा, मिट्टी और नमी संरक्षण, खरपतवार नियंत्रण,पारिस्थितिकी बहाली जैसी कुछ अन्य सहायक गतिविधियों के साथ-साथ वृक्षारोपण।  (8 वर्षों में 10816.70 हेक्टेयर क्षेत्र में पौधे रोपे गए हैं।)  किसानों को आर्थिक मूल्य के फलदार पौधों का वितरण, अब तक इस गतिविधि के अंतर्गत 1432.98 हेक्टेयर क्षेत्र में पौधे रोपे गए हैं।  गंगा वाटिकाओं का विकास, रिवर फ्रंट विकास और संस्थागत एवं औद्योगिक एस्टेट वृक्षारोपण, अब तक इस गतिविधि के अंतर्गत कुल 93.10 हेक्टेयर क्षेत्र में पौधे रोपे गए हैं।  मृदा एवं जल संरक्षण, तथा आर्द्रभूमि प्रबंधन, इस गतिविधि के अंतर्गत कुल 1128.00 हेक्टेयर क्षेत्र में पौधे रोपे गए हैं।

मुख्य सचिव ने कहा कि जिला गंगा समितियां सभी जिलों में नियमित मासिक, अनिवार्य, निगरानी, ​​मिनट (4एम) बैठकें आयोजित कर रही हैं। साथ ही, बैठक के मिनट (एमओएम) नियमित रूप से एनएमसीजी द्वारा डिजाइन किए गए समर्पित जीडीपीएमएस पोर्टल पर अपलोड किए जा रहे हैं, जिसमें कुछ जिलों में कुछ बदलाव किए गए हैं।अप्रैल 2023 से जुलाई, 2024 के दौरान जिला गंगा समितियों की कुल 208 बैठकों में से कुल 194 मिनट (एमओएम) जीडीपीएमएस पोर्टल पर अपलोड किए गए।

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